Monday, 8 October 2012

श्री कृष्ण जी ने हर मानव के दुःख और सुख को लेकर ही कहा है।



 जैसा की आप जानते है की अच्छे शब्द कम ही मिलते है पढने को, और ज्ञान की बात तो भूल ही जाइये की आपको मिलेगा भी पढने के लिए, तो इसी बातो को देखते हुए हमने " आनंद वर्मा " ने आपके लिए कुछ नया बातो को आपके सामने रखने की कोशिश की है, आपके लिए आश्चर्य होगा पढ़ कर, पर ये सभी बाते सत्य है { सत्य हमेशा कड़वा होता है, और आपके दिल को ख़ुशी मिलेगे और दिल से मानने से आपका जीवन सफल भी हो सकता है ... !! जय श्री कृष्ण !!

 इसे आप जरुर पढ़े, क्योकि भगवान श्री कृष्ण जी ने जो बाते कही है, वो हर मानव के दुःख और सुख को लेकर ही कहा है।


-:--:--:-:---:--:--:-:---:--:--:-:---:--:--:-:---:--:--:-:---:--:--:-:---:--:--:-:---:--:--:-:--:---:--:--:-:--:---:--:--:-:--:--

 As you know there are no more good words you can find to read, and you should just forget hoping for the for the words which educates you! keeping in mind these all things we " Anand Verma " decided to give you some good and new things in front of you by which you will feel surprising and interesting..these all the things are true(True is always painfull and bitter). you will feel happiness and if appreciate it then your life will be successful..!! jai shree krishna !!

 you must read it. because Lord Shri Krishna has release which speaches those are said according to the human's sorrow and happiness.


Tuesday, 29 May 2012

यही सच्ची पूजा होती है।

वृंदावन के एक मंदिर में मीराबाई ईश्वर को भोग लगाने के लिए रसोई पकाती थीं। वे रसोई बनाते समय मधुर स्वर में भजन भी गाती थीं।
एकदिन मंदिर के प्रधान पुरोहित नेcदेखा कि मीरा अपने वस्त्रों को बिना बदले और बिना स्नान किए ही रसोई बना रही हैं। उन्होंने बिना नहाए-धोए भोग की रसोई बनाने के लिए मीराको डांट लगा दी। पुराहित ने उनसे कहा कि ईश्वर यह अन्न कभी भी ग्रहण नहीं करेंगे। पुरोहित के आदेशानुसार, दूसरे दिन मीरा ने भोग तैयार करने से पहले न केवल स्नान किया, बल्कि पूरी पवित्रता और खूब सतर्कता के साथ भोग भी बनाया। शास्त्रीय विधि का पालन करने में कहीं कोई भूल न हो जाए, इस बात से वे काफी डरी रहीं।तीन दिन बाद पुरोहित ने सपने में ईश्वर को देखा!ईश्वर ने उनसे कहा कि वे तीन दिन से भूखे हैं। पुरोहित ने सोचा कि जरूर मीरा से कुछ भूल हो गई होगी! उसने भोजन बनाने में न शास्त्रीय विधानका पालनकिया होगा और नही पवित्रता का ध्यानरखा होगा! ईश्वरबोले--इधर तीन दिनों से वह काफी सतर्कता के साथ भोग तैयार कररही है।


 वह भोजन तैयार करते समय हमेशा यही सोचती रहती है कि उससे कहीं कुछ अशुद्धि या गलती न हो जाए! इस फेर में मैंउसका प्रेमतथा मधुर भाव महसूस नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए यह भोग मुझे रुचिकर नहीं लग रहा है। ईश्वर की यह बात सुन कर अगले दिन पुरोहित ने मीरा से न केवल क्षमा- याचना की, बल्कि पहले की ही तरह प्रेमपूर्ण भाव से भोग तैयार करने के लिए अनुरोध भी किया। सच तो यह है कि जब भगवान की आराधना अंतर्मनसे की जाती है, तब अन्य किसी विधि-की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। अभिमान त्याग कर और बिना फल की चिंता किए हुए ईश्वर की पूजा जरूर करनी चाहिए।हालांकि उनकी प्रेमपूर्वक आराधना और सेवा ही सर्वोत्तमहै। इसलिए बिना मंत्रों के उच्चारण और फूल चढाए हुए ही यदि आप मन से दो मिनट के लिए भी ईश्वर को याद कर लेते हैं, तो यही सच्ची पूजा होती है।

Saturday, 28 January 2012

अपनी इच्छा की पूर्ति करता है।

''मनुष्य देवता विशेष की पूजा करने का प्रयत्न करता है और अपनी इच्छा की पूर्ति करता है। किन्तु वास्तविकता तो यह है कि यह सारे लाभ केवल मेरे द्वारा प्रदान किये जाते हैं।''
अतः मनुष्य को चाहिए कि वह देवताओं और परमात्मा में अंतर करना सीखें।देव परमात्मा के सारे गुणों से युक्त नही होते। देव तो परमात्मा का अंश स्वरुप हैं, परम पूजनीय भगवन तो सिर्फ नारायण हैं, जो प्रत्येक युग में अलग-अलग अवतारों में अवतरित होते हैं।

''Man seeks favors of a particular demigod and obtains his desires.
 But in actuality these benefits are bestowed by Me alone.''
So, all we need is to differentiate demigods from The Eternal Parmatma.
 Demigods possess partial qualities of Parmatma.
 The one to be worshiped is Narayan, 
who comes to this earth in different avtars in each yug.

श्री कृष्ण :
''मैं प्रत्येक जीव के ह्रदय में परमात्मा स्वरुप स्थित हूँ। जैसे ही कोई किसी देवता की पूजा करने की इच्छा करता है, मैं उसकी श्रद्धा को स्थिर करता हूँ, जिससे वह उसी विशेष देवता की भक्ति कर सके।''

Shri Krishn :
''I am in everyone's heart as the Supersoul. As soon as one desires to worship the demigods, I make his faith steady so that he can devote himself to some particular deity.''

Tuesday, 29 November 2011

The name Krishna means...


A selection of Srila Prabhupada's commentaries and conversations about the name "Krishna," including its Sanskrit etymology (word origin). Where possible, we've provided links for further exploring the topic or obtaining your own copy of the book quoted.

The meaning of the name "Krishna":


"The name Krishna means 'all-attractive.' God attracts everyone; that is the definition of 'God.' We have seen many pictures of Krishna, and we see that He attracts the cows, calves, birds, beasts, trees, plants, and even the water in Vrindavana. He is attractive to the cowherd boys, to the gopis, to Nanda Maharaja, to the Pandavas, and to all human society. Therefore if any particular name can be given to God, that name is 'Krishna.'"