Tuesday 29 May 2012

यही सच्ची पूजा होती है।

वृंदावन के एक मंदिर में मीराबाई ईश्वर को भोग लगाने के लिए रसोई पकाती थीं। वे रसोई बनाते समय मधुर स्वर में भजन भी गाती थीं।
एकदिन मंदिर के प्रधान पुरोहित नेcदेखा कि मीरा अपने वस्त्रों को बिना बदले और बिना स्नान किए ही रसोई बना रही हैं। उन्होंने बिना नहाए-धोए भोग की रसोई बनाने के लिए मीराको डांट लगा दी। पुराहित ने उनसे कहा कि ईश्वर यह अन्न कभी भी ग्रहण नहीं करेंगे। पुरोहित के आदेशानुसार, दूसरे दिन मीरा ने भोग तैयार करने से पहले न केवल स्नान किया, बल्कि पूरी पवित्रता और खूब सतर्कता के साथ भोग भी बनाया। शास्त्रीय विधि का पालन करने में कहीं कोई भूल न हो जाए, इस बात से वे काफी डरी रहीं।तीन दिन बाद पुरोहित ने सपने में ईश्वर को देखा!ईश्वर ने उनसे कहा कि वे तीन दिन से भूखे हैं। पुरोहित ने सोचा कि जरूर मीरा से कुछ भूल हो गई होगी! उसने भोजन बनाने में न शास्त्रीय विधानका पालनकिया होगा और नही पवित्रता का ध्यानरखा होगा! ईश्वरबोले--इधर तीन दिनों से वह काफी सतर्कता के साथ भोग तैयार कररही है।


 वह भोजन तैयार करते समय हमेशा यही सोचती रहती है कि उससे कहीं कुछ अशुद्धि या गलती न हो जाए! इस फेर में मैंउसका प्रेमतथा मधुर भाव महसूस नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए यह भोग मुझे रुचिकर नहीं लग रहा है। ईश्वर की यह बात सुन कर अगले दिन पुरोहित ने मीरा से न केवल क्षमा- याचना की, बल्कि पहले की ही तरह प्रेमपूर्ण भाव से भोग तैयार करने के लिए अनुरोध भी किया। सच तो यह है कि जब भगवान की आराधना अंतर्मनसे की जाती है, तब अन्य किसी विधि-की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। अभिमान त्याग कर और बिना फल की चिंता किए हुए ईश्वर की पूजा जरूर करनी चाहिए।हालांकि उनकी प्रेमपूर्वक आराधना और सेवा ही सर्वोत्तमहै। इसलिए बिना मंत्रों के उच्चारण और फूल चढाए हुए ही यदि आप मन से दो मिनट के लिए भी ईश्वर को याद कर लेते हैं, तो यही सच्ची पूजा होती है।