{4.} रे मन कृष्ण नाम कहि लीजे।

जय श्री कृष्णा।
कृष्णाय वासुदेवाय,हरये परमात्मने।
प्रणत क्लेश नाशाय,गोविँदाय नमो नमः॥


रे मन कृष्ण नाम कहि लीजे।
गुरु के बचन अटल करि मानहि, साधु समागम कीजे-रे मन...
पढिए सुनिए भगति भागवत और कहा कछु कीजे, कृष्ण नाम बिनु जनम बादि ही, विरथा काहे जीजे-रे मन...
कृष्ण नाम रस बह्यो जात हे,तृषावंत ह्वे पीजे, सूरदास हरिशरन राखिये,जनम सफल करि लीजे-रे मन.

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!!    पृथ्वी सत्य की शक्ति द्वारा समर्थित है    !!

!! श्री कृष्ण !!

ये सत्य की शक्ति ही है जो सूरज को चमक और हवा को वेग देती है; दरअसल सभी चीजें सत्य पर निर्भर करती हैं. सत्य की शक्ति महान है !


!! Shree Krishna !!

This earth is supported by the power of truthfulness; its the truthfulness that gives shine to the Sun & velocity to the Wind. Each & everything is dependent upon the truth. Such is the power of truth ! 

!! Shree Krishn !!
A living being under the influence of Maya, thinks of itself having independent existence & being the master. Such being is unable to know his own nature & also, of the Lord ! 

!! श्री कृष्ण !!
जीव माया से वशीभूत होकर खुद को सबसे सवतंत्र और प्रत्येक वास्तु का स्वामी मान बैठता है. ऐसा प्राणी अपने और उस भगवान् के असल स्वरुप को समझने में असफल रहता है !


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!!  श्री कृष्ण :  !!
हे अर्जुन ! ये तुम्हारा शोक ना तुम्हारे हित में है, ना समाज के हित में। ना वर्तमान के लिए शुभ है, ना भविष्य के लिए। केवल कर्म करो। ऐसा कर्म तो अपने आप में ही पुण्य है, पवित्र है और समाज के लिए कल्याणकरी भी है। परन्तु यदि तुम समाज कल्याण के कार्य में अपना हित मिला लोगे, तो तुम्हारा वो कर्म अशुद्ध और अशुभ हो जाएगा।


Shree Krishn :
O Arjun ! your grief is neither good for you nor for society. Neither for present nor for future. Perform your karma. Such a karma is in itself a charity, it is sacred as well as beneficial for the society. But if you will confuse your own profits with the social work, such a karma will be impure & inauspicious.






!!   श्री कृष्ण :  !!

''हे पृथापुत्र ! तीनो लोकों में मेरे लिए कोई भी कर्म नीयत नहीं है, न मुझे किसी वास्तु का अभाव है और न आवश्यकता ही है। तो भी मैं कर्म करने में तत्पर रहता हूँ।''


भगवान, जो तीनो लोको के स्वामी हैं और सबकुछ उनके अधीन होने के कारण, उनके लिए निश्चय ही कोई कर्त्तव्य नहीं रह जाता। इसीलिए उनके लिए कोई कर्म का बंधन तो है ही नहीं। परन्तु फिर भी वह कृष्ण अवतार में, अर्जुन के उपदेशक के रूप में रणभूमि में कर्म करने में कार्यरत हैं। 




Shree Krishn :

''O son of Prtha, there is no work prescribed for Me within all the three planetary systems. Nor am I in want of anything, nor have I need to obtain anything--and yet I am engaged in work.''


Lord, who is the owner of the three lokas & everything being in His control, there is no obligation to do anything upon Him. But still He, in the avtar as Krishn, is present in the battle-field as a teacher of Arjun & doing Karma.


इन सब पेजों पर आपके लिए बहुत कहानिया है,



{ Anand Verma }